लेखनी कहानी -20-May-2022
लेखक आदर्श पाण्डेय
कविता -मेरी माँ के आँगन
मेरी माँ के आँगन से , ये शहर छोटा लगता है।
मेरी माँ के दीपक से, ये सूरज फीका लगता है।।
हम लाख कमा ले दुनिया में ,मनचाही दौलत।
पर माँ के हाथ मिले पैसों के आगे सब बौना लगता है।।
माँ के हाथों से मिल जाती है तकदीर की सब लकीरें
पर माँ का हाथ छूट रहा है, अब तो ऐसा लगता है।
इतना गंभीर पाप भला कौन सा बेटा करता होगा ।
की माँ को आश्रम भेजकर,खुद घर मे रहता होगा
ADARSH PANDEY
21-May-2022 09:19 PM
बहुत बहुत धन्यवाद आप सब का
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Seema Priyadarshini sahay
21-May-2022 03:55 PM
बेहतरीन
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Neelam josi
21-May-2022 03:17 PM
Very nice 👍🏼
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